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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अतीन्द्रिय क्षमताओं की पृष्ठभूमि

अतीन्द्रिय क्षमताओं की पृष्ठभूमि

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : श्रीवेदमाता गायत्री ट्रस्ट शान्तिकुज प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :104
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4105
आईएसबीएन :000

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गुरुदेव की वचन...

समय फैलता व सिकुड़ता है


अभी तक तो यह अनुभव में आया है कि घन पदार्थ ही फैलते व सिकुड़ते हैं, परंतु वैज्ञानिक संवेदनाओं द्वारा अब यह सिद्ध हो चुका है कि, न केवल पदार्थ ही सिकुड़ता है, वरन् समय भी फैलता और सिकुड़ता है।

मालूम तो यही पड़ता है कि, समय बिना किसी की प्रतीक्षा किए अपने ढंग से, अपने क्रम से व्यतीत होता चला जाता है, पर अब इस संबंध में नये सिद्धांत सामने आये हैं कि, गति की तीव्रता होने पर समय की चाल घट जाती है। मौटेतौर से इसका परिचय हम द्रुतगामी वाहनों पर सवारी करके आसानी से देख सकते हैं। एक घंटे में पैदल चलने पर तीन मील का सफर होता है, पर मोटर से ८० मील पार कर लेते हैं। यह समय व्यतीत होने की चाल का घट आना भी कहा जा सकता है।

यह तो मोटा उदाहरण हुआ। वैज्ञानिक अनुसंधान ने समय की गति सिकुड़ने से लेकर उसकी स्थिरता तक को एक तथ्य के रूप में सिद्ध किया है। यद्यपि वैसा कभी प्रत्यक्ष नहीं हो सका, पर वे सभी सिद्धांत प्रामाणिक ठहराये जा चुके, जिनके सहारे समय की गति को शिथिल अथवा अवरुद्ध होने की बात संभव कही जाने लगी है।

आइंस्टीन ने अपनी क्लिष्ट गणनाओं के आधार पर इस. संभावना को पूर्णतया विश्वस्त बताया है। वे कहते हैं—गति में वृद्धि होने पर समय की चाल स्वभावतः घट जाएगी। यदि १,८६,००० मील प्रति सेकंड प्रकाश की चाल से चला जा सके, तो समय की गति इतनी न्यून हो जाएगी कि उसके व्यतीत होने का पता भी न चलेगा। इस चाल के किसी राकेट पर बैठकर सफर किया जाए, तो जिन ग्रह-नक्षत्रों पर घूमकर वापस लौटने पर अपने वर्तमान गणित के हिसाब से एक हजार वर्ष लगेंगे, उस विशिष्ट गणित के हिसाब से एक महीने से भी कम समय लगेगा। ऐसा व्यक्ति पृथ्वी पर लौटेगा तो देखेगा कि वहाँ हजार वर्ष बीत गये और ढेरों पीढ़ियाँ तथा परिस्थितियाँ बदल गईं। इतने पर भी उस लौटे हुए व्यक्ति की आयु में तनिक अंतर दिखाई न पड़ेगा, वह तरुण का तरुण प्रतीत होगा।

पुराणों में ऐसी कथाएँ मिलती हैं, जिनमें समय की सापेक्षता की कल्पना की गई है। भागवत पुराण में वर्णन है कि, पाताल लोक के राजा रेवत अपनी पुत्री रेवती के लिए उपयुक्त वर तलाश न कर सके, तो उस कठिनाई को हल करने के लिए ब्रह्माजी के पास गये। उस समय वहाँ एक संगीत कार्यक्रम चल रहा था। ब्रह्माजी उसी में व्यस्त थे, अस्तु रेवत को प्रतीक्षा में बैठना पड़ा। सभा समाप्त हुई। राजा ने ब्रह्माजी को अपना मनोरथ बताया, तो उन्होंने हँसकर कहा-इतनी देर में तो पृथ्वी में सत्ताईस चतुर्युगी व्यतीत हो गई। जो लड़के तुम्हें पसंद आये थे, वे सब मर-खप गये अब उनके वंश, गोत्रों तक का पता नहीं। इन दिनों नारायण के अंशावतार बलदेव जी विद्यमान हैं, उन्हें, अपनी कन्या दान कर दो।


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    अनुक्रम

  1. भविष्यवाणियों से सार्थक दिशा बोध
  2. भविष्यवक्ताओं की परंपरा
  3. अतींद्रिय क्षमताओं की पृष्ठभूमि व आधार
  4. कल्पनाएँ सजीव सक्रिय
  5. श्रवण और दर्शन की दिव्य शक्तियाँ
  6. अंतर्निहित विभूतियों का आभास-प्रकाश
  7. पूर्वाभास और स्वप्न
  8. पूर्वाभास-संयोग नहीं तथ्य
  9. पूर्वाभास से मार्गदर्शन
  10. भूत और भविष्य - ज्ञात और ज्ञेय
  11. सपनों के झरोखे से
  12. पूर्वाभास और अतींद्रिय दर्शन के वैज्ञानिक आधार
  13. समय फैलता व सिकुड़ता है
  14. समय और चेतना से परे

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